मसाला किंग Mahashay Dharampal Gulati Autobiography

हमारे देश के करोड़ों लोगों के खाने का स्वाद बढ़ाने वाली फेमस मसाला कंपनी MDH के मालिक Mahashay Dharmpal Gulati का 3 दिसम्बर की सुबह निधन हो गया है। उन्होंने माता चन्नन देवी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। महाशय धर्मपाल गुलाटी 98 वर्ष के थे। आज हम महज एक छोटी सी दूकान से MDH जैसी प्रसिद्ध और बड़ी कंपनी खड़ी करने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी के जीवन के सफ़र के बारे में जानते हैं। देश विभाजन के समय जब महाशय धर्मपाल गुलाटी भारत आए थे उस समय उनके पास सिर्फ 1,500 रुपये थे|
नए-नए कारों के शौकीन धर्मपाल गुलाटी एक भारतीय व्यवसायी थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी के पहले 25 साल पाकिस्तान में बिताए थे। बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से भारत आकर उन्होंने मसालों के व्यापार में कदम रखा। पहले उन्होंने मसालों की एक छोटी सी दुकान खोली और धीरे धीरे मसालों का पूरा साम्राज्य तैयार कर लिया। आइए, एक नजर डालते हैं उनकी पूरी जिंदगी पर
महाशय धर्मपाल गुलाटी का जीवन परिचय
महाशय धर्मपाल गुलाटी (Dharampal Gulati) का जन्म 27 मार्च 1923 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था| उनके पिता का नाम चुन्नी लाल गुलाटी और माता का नाम चनन देवी था।उनकी पांच बहनें और दो भाई थे। उनके भाई महाशय सतपाल गुलाटी और धर्मवीर गुलाटी दोनों ही व्यवसायी थे।एक पंजाबी परिवार में जन्मे गुलाटी का बचपन पाकिस्तान में बीता। उन्होंने प्राइमरी तक की शिक्षा पाकिस्तान से ही पूरी की। पढ़ाई में उनकी रुचि नहीं थी, इसलिए 5वीं कक्षा में ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। पाकिस्तान में उनके पिता की मसाले की दुकान थी।
पाकिस्तान में ही जब उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा छोड़ी, उसके बाद हैंडीक्राफ्ट्स के कई काम भी सीखे। इनमें कारपेंटरी, एम्ब्रॉयडरी, पेंटिंग वगैरह भी शामिल हैं। लेकिन बाद में पिता उन्हें अपने पुस्तैनी मसालों के कारोबार में ले आए।
1941 में जब उनकी उम्र महज 18 साल थी, तब उनकी शादी लीलावती से हुई, लेकिन 1992 में ही उनकी मौत हो गई। उनका सिर्फ एक बेटा संजीव गुलाटी था, जिनकी मौत 1992 में ही मां की मौत के दो महीने बाद हो गई थी। इन दिनों वे अपने पोते-पोतियों के साथ रह रहे थे। उनकी छह पोतियां हैं।
देश बंटवारे के बाद कैसा रहा जीवन संघर्ष
1947 में भारत – पाकिस्तान बंटवारे के दौरान उन्होंने भारत में आने का निर्णय लिया। वहां से उनका पूरा परिवार दिल्ली आकर बस गया। शुरुआती दिनों में वे करोल बाग में अपनी भांजी के यहां आकर रहे। वहां न तो बिजली थी, न पानी और न ही शौचालय का व्यवस्था था यह दौर उनके लिए काफी संघर्ष भरा रहा ।
मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी कैसे जुड़े मसालों के कारोबार से
जब वे भारत आए तो उनके पॉकेट में 1500 रुपये थे। अपने उन पैसों से उन्होंने एक तांगा घोड़े वाला खरीदा, जिसकी कीमत तब 650 रुपये बताई जा रही है। अपने इस तांगे में यात्रियों को वे करोल बाग से कनॉट प्लेस तक लाते और पहुंचाते।बाद में उन्होंने अपना तांगा बेच दिया क्योंकि उन्हें लगा कि इस काम में उन्हें न तो मजा आ रहा है और न ही यह उनका काम है। इसके बाद 1948 में उन्होंने करोल बाग में अपनी छोटी-सी दुकान बनाई ताकि अपना पुस्तैनी काम फिर से शुरू कर सकें।

जानिये कैसे पड़ा मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी की कंपनी का नाम MDH
स्कूल छोड़ने के बाद मसालों की दुकान में उन्होंने पिता की मदद करना शुरू कर दिया। इस दुकान का नाम था- ‘महाशियन दी हट्टी’ यानी एमडीएच। आज भी एमडीएच मसाले उनकी पहचान बना हुआ है। उस दौर में पाकिस्तान की अपनी दुकान में उन्होंने मेंहदी बेचना शुरू कर दिया था और हर रोज 20 रुपये तक कमा लेते थे।
Mahashay Dharampal Gulati का तांगेवाले से अरबपति बनने का सफर
चांदनी चौक में खोली पहली दुकान
शुरुआती सफलता के बाद गुलाटी ने 1953 में चांदनी चौक में एक अन्य दुकान भी खरीद ली। साल 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में उन्होंने अपनी पहली मसाला फैक्ट्री स्थापित की। जहां उन्होंने एमडीएच मसालों के साम्राज्य यानि महाशियां दी हट्टी लिमिटेड की स्थापना की, जिसका अर्थ है “एक महानुभाव आदमी की दुकान” पंजाबी में।धीरे धीरे मसालों की दुनिया में एमडीएच मसालों का नाम देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी बड़ा नाम हो गया। जल्दी ही एमडीएच मसालों का कारोबार 100 से भी ज्यादा देशों में फैल गया।
रूपक स्टोर्स की कहानी
साल 1954 में दिल्ली के करोलबाग में उन्होंने रूपक स्टोर्स की स्थापना की। इस एरा का वह सबसे मॉडर्न स्टोर माना जाता था लेकिन बाद में उन्होंने उसे अपने छोटे भाई सतपाल गुलाटी को वह स्टोर दे दिया।
Mahashay Dharmpal Gulati award- 2019 में ‘पद्मभूषण’ से थे सम्मानित
साल 2016 में गुलाटी को एबीसीआई वार्षिक पुरस्कार समारोह में इंडियन आफ द ईयर, 2017 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के एक्सेलेंस अवार्ड और 2019 में राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
एमडीएच में उनका 80 प्रतिशत शेयर रहा। वह एक अस्पताल, 15 फैक्ट्ररीज और 20 स्कूलों के मालिक रहे। 2017 में वह सबसे ज्यादा सैलेरी पाने वाले सीईओ थे। उनकी आय 21 करोड़ प्रतिवर्ष थी। उनकी कंपनी का प्रतिवर्ष टर्नओवर 1000 करोड़ रुपये का था, जिसका नेट वर्थ 500 करोड़ रुपये था।
हर रोज योगा करते थे महाशय
अपनी मौत के पहले तक भी गुलाटी अपने मसालों के प्रमोशन से लेकर करोबार संबंधी सभी कार्यों से जुड़े रहे थे। हर रोज सवेरे वह मॉर्निंग वॉक और योगा करते थे। हर रोज घर से निकलने से पहले वह हवन जरूर करते थे। आध्यात्मिक तौर पर वह आर्य समाज को मानते और उसे ही फॉलो भी करते थे।
अस्पताल के जरिये की समाज सेवा
Mahashay Dharmpal Gulati ने महाशय चुन्नी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की थी, जिसके अंतर्गत 250 बेड वाला अस्पताल चलता था। इसी ट्रस्ट के तहत स्लम इलाकों में वे मोबाइल हॉस्पिटल भी चलाते थे।
नई-नई कारों के शौक़ीन थे Mahashay Dharmpal Gulati
अगर हम कारों की बात करें तो उनके पास सबसे पहले सफेद रंग की एम्बेसडकर कार थी। उसके बाद उन्होंने मारुति 800 ली। धर्मपाल गुलाटी को कारों का बहुत ज्यादा शौक था। शायद यही वजह थी कि उनके पास सबसे महंगी कारें थीं। आइए, एक नजर डालते हैं इन कारों पर….

Mahashay Dharmpal Gulati Cars
1- Rolls Royce Ghost (कीमत- 6.21 cr.)
2- Chrysler (कीमत- 1 cr.)
3- Toyota Innova Crysta (कीमत- 22.43 lakh)
4- Jensen Intercepter (कीमत- 49.57 lakh)
कितनी संपत्ति के हैं मालिक (Mahashay Dharmpal Gulati Assets)
आपको बता दें कि हुरुन इंडिया रिच 2020 की लिस्ट में धर्मपाल गुलाटी को देश के सबसे बुजुर्ग अमीर व्यक्ति बताया गया था। वहीं, समस्त में वे 216वें स्थान पर काबिज थे। उन्हें यूरोमॉनिटर के मुताबिक एफएमसीजी सेक्टर में सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ भी बताया गया था। बता दें कि सालाना धर्मपाल गुलाटी को 25 करोड़ इन हैंड सैलरी मिलती थी। कुल आय की बात करें तो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार धर्मपाल गुलाटी की कुल संपत्ति 5400 करोड़ के लगभग है।
महाशयजी की सफलता के पीछे कोई रहस्य नही है। क्यों की उन्होंने अपने व्यवसाय में सदैव नियमो और कानूनों का पालन करते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। उनका एक ही लक्ष्य था की की ग्राहकों को अच्छी से अच्छी सेवा प्रदान की जाए ताकि वह इसे अधिक पसंद करे। उन्होंने व्यवसाय को चलाने के साथ साथ ग्राहकों का भी ध्यान रखा।