भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक – मंगल पाण्डेय

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मंगल पाण्डेय -जयंती -१९ जुलाई

भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पांडे ने अपने जीवन का बलिदान कर एक ऐसी क्रांति का आगाज किया जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी की चूलें हिला डालीं। मंगल पांडे एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया। मंगल पांडे कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फ्रैंटी के सिपाही थे। 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (क्रांतिकारी) मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था| सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। वो सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। वे कलकत्ता (कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे. भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात् 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी
ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तर आदि की नीति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत पैदा कर दी थी और जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।
भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों से सम्बंधित अफवाह ने आग में घी का कार्य किया। 9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ और मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया।
आक्रमण करने से पहले मंगल ने अपने अन्य साथियों से समर्थन का आह्वान भी किया था पर डर के कारण जब किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपनी ही रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था।

Image Source: Wikimedia
मंगल पाण्डेय ने इसी एन्फील्ड राइफल का प्रयोग २९ मार्च १८५७ को बैरकपुर छावनी में किया था

इसके बाद पांडे ने एक और अँगरेज़ अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को मौत के घात उतार दिया |इसके बाद मंगल पांडे के विद्रोह को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनका कोर्ट मार्शल किया गया। छह अप्रैल के दिन कोर्ट मार्शल का फैसला सुनाया गया जिसमें कहा गया कि 18 अप्रैल के दिन मंगल पांडे को फांसी दे दी जायेगी। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने यह महसूस किया कि यदि फांसी देने में देर की गई तो और भी सैनिक बगावत में शामिल हो सकते हैं इसलिए आठ अप्रैल को ही गुपचुप तरीके से मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।
मंगल पांडे की शहादत आगे चलकर क्रांति का प्रतीक बन गई।

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